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वेदवाड्मय – परिचय एवं अपौरुषेयवाद – Vedavadmaya – Introduction And Apaurusheyvad

‘सनातन धर्म’ एवं ‘भारतीय संस्कृति’ का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय ‘वेद’ माना गया है। मानव जाति के लौकिक (सांसारिक) तथा पारमार्थिक अभ्युदय-हेतु प्राकट्य होने से वेद को अनादि एवं नित्य कहा गया है। अति प्राचीनकालीन महा तपा, पुण्यपुञ्ज ऋषियों के पवित्रतम अन्त:करण में वेद के दर्शन हुए थे, अत: उसका ‘वेद’ नाम प्राप्त हुआ। ब्रह्म का स्वरूप ‘सत-चित-आनन्द’ होने से ब्रह्म को वेद का पर्यायवाची शब्द कहा गया है। इसीलिये वेद लौकिक एवं अलौकिक ज्ञान का साधन है। ‘तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये0’- तात्पर्य यह कि कल्प के प्रारम्भ में आदि कवि ब्रह्मा के हृदय में वेद का प्राकट्य हुआ।

सुप्रसिद्ध वेदभाष्यकार महान पण्डित सायणाचार्य अपने वेदभाष्य में लिखते हैं कि ‘इष्टप्राप्त्यनिष्टपरिहारयोरलौकिकमुपायं यो ग्रन्थो वेदयति स वेद:'[1]

निरूक्त कहता है कि ‘विदन्ति जानन्ति विद्यन्ते भवन्ति0’ [2]

‘आर्यविद्या-सुधाकर’ नामक ग्रन्थ में कहा गया है कि— वेदो नाम वेद्यन्ते ज्ञाप्यन्ते धर्मार्थकाममोक्षा अनेनेति व्युत्पत्त्या चतुर्वर्गज्ञानसाधनभूतो ग्रन्थविशेष:॥ [3]

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‘कामन्दकीय नीति’ भी कहती है- ‘आत्मानमन्विच्छ0।’ ‘यस्तं वेद स वेदवित्॥’ [4] कहने का तात्पर्य यह है कि आत्मज्ञान का ही पर्याय वेद है।

सूची

1 वेदवाड्मय-परिचय एवं अपौरुषेयवाद

2 मनुस्मृति में वेद ही श्रुति

3 वेद ईश्वरीय या मानवनिर्मित

4 दर्शनशास्त्र के अनुसार

5 दर्शनशास्त्र का मूल मन्त्र

6 वेद के प्रकार

7 टीका टिप्पणी और संदर्भ

8 संबंधित लेख

श्रुति भगवती बतलाती है कि ‘अनन्ता वै वेदा:॥’ वेद का अर्थ है ज्ञान। ज्ञान अनन्त है, अत: वेद भी अनन्त हैं। तथापि मुण्डकोपनिषद की मान्यता है कि वेद चार हैं- ‘ऋग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदो ऽथर्ववेद:॥'[5]इन वेदों के चार उपवेद इस प्रकार हैं—

आयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वश्र्चेति ते त्रय:।

स्थापत्यवेदमपरमुपवेदश्र्चतुर्विध:॥

उपवेदों के कर्ताओं में

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1.आयुर्वेद के कर्ता धन्वन्तरि,

2.धनुर्वेद के कर्ता विश्वामित्र,

3.गान्धर्ववेद के कर्ता नारद मुनि और

4.स्थापत्यवेद के कर्ता विश्वकर्मा हैं।

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