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अर्जुनविषादयोग

Arjuna’s Dilemma

The first chapter of the Bhagavad Gita – “Arjuna Vishada Yoga” introduces the setup, the setting, the characters and the circumstances that led to the epic battle of Mahabharata, fought between the Pandavas and the Kauravas. It outlines the reasons that led to the revelation of the of Bhagavad Gita.\nAs both armies stand ready for the battle, the mighty warrior Arjuna, on observing the warriors on both sides becomes increasingly sad and depressed due to the fear of losing his relatives and friends and the consequent sins attributed to killing his own relatives. So, he surrenders to Lord Krishna, seeking a solution. Thus, follows the wisdom of the Bhagavad Gita.

 

अर्जुन की दुविधा

भगवद गीता का पहला अध्याय अर्जुन विशाद योग उन पात्रों और परिस्थितियों का परिचय कराता है जिनके कारण पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत का महासंग्राम हुआ। यह अध्याय उन कारणों का वर्णन करता है जिनके कारण भगवद गीता का ईश्वरावेश हुआ। जब महाबली योद्धा अर्जुन दोनों पक्षों पर युद्ध के लिए तैयार खड़े योद्धाओं को देखते हैं तो वह अपने ही रिश्तेदारों एवं मित्रों को खोने के डर तथा फलस्वरूप पापों के कारण दुखी और उदास हो जाते हैं। इसलिए वह श्री कृष्ण को पूरी तरह से आत्मसमर्पण करते हैं। इस प्रकार, भगवद गीता के ज्ञान का प्रकाश होता है।

Bhagavad Gita

अध्याय 1 – श्लोक 7

श्लोक 7 - Verse 7अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।1.7।।asmākaṁ tu viśhiṣhṭā ye tānnibodha dwijottama nāyakā mama sainyasya sanjñārthaṁ...
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अध्याय 1 – श्लोक 29

श्लोक 29 - Verse 29सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति। वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते।।1.29।।sīdanti mama gātrāṇi mukhaṁ cha pariśhuṣhyati vepathuśh cha śharīre me roma-harṣhaśh...
Bhagavad Gita

अध्याय 1 – श्लोक 24

श्लोक 24 - Verse 24संजय उवाच एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत। सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्।।1.24।।sañjaya uvācha evam ukto hṛiṣhīkeśho guḍākeśhena bhārata senayor ubhayor madhye sthāpayitvā rathottamamशब्दों का अर्थsañjayaḥ uvācha—Sanjay...
Bhagavad Gita

अध्याय 1 – श्लोक 27

श्लोक 27 - Verse 27श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि। तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्।।1.27।।tān samīkṣhya sa kaunteyaḥ sarvān bandhūn avasthitān kṛipayā parayāviṣhṭo viṣhīdann idam abravītशब्दों का अर्थtān—these; samīkṣhya—on seeing;...
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अध्याय 1 – श्लोक 18

श्लोक 18 - Verse 18द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते। सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।1.18।।drupado draupadeyāśhcha sarvaśhaḥ pṛithivī-pate saubhadraśhcha mahā-bāhuḥ śhaṅkhāndadhmuḥ pṛithak pṛithakशब्दों का अर्थdrupadaḥ—Drupad; draupadeyāḥ—the five sons...
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अध्याय 1 – श्लोक 6

श्लोक 6 - Verse 6युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्। सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः।।1.6।।saubhadro draupadeyāśhcha sarva eva mahā-rathāḥशब्दों का अर्थsaubhadraḥ—the son of Subhadra; draupadeyāḥ—the sons...
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अध्याय 1 – श्लोक 31

श्लोक 31 - Verse 31निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव। न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे।।1.31।।nimittāni cha paśhyāmi viparītāni keśhava na cha śhreyo ’nupaśhyāmi hatvā sva-janam āhaveशब्दों...